27-07-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

बुद्धि रूपी नेत्र क्लीयर और पावरफुल बनाओ

आज भट्ठी की पढ़ाई का पेपर लिखत में दिया। फिर कल कौनसा पेपर शुरू होगा, यह जानते हो? प्रैक्टिकल पेपर में कौनसे क्वेश्चन आने वाले हैं, उन्हों को जानते हो? किस-किस प्रकार के क्वेश्चन्स आयेंगे? कल्प पहले क्या-क्या हम आत्माओं द्वारा हुआ है, वह स्मृति आती है? (हाँ) जब यह स्मृति आती है, तो क्वेश्चन कौन से आयेंगे - यह स्मृति नहीं आती है? माया सामना तो करेगी - लेकिन किस-किस रूपों में करेगी यह भी जानते हो कि नहीं? मास्टर नॉलेजफुल बनकर जा रहे हो ना। मास्टर नॉलेजफुल को तो इनएडवांस सभी मालूम पड़ ही जाता है। जैसे साइन्स वाले अपने यन्त्रों द्वारा जो भी कोई घटना जैसेकि तूफान वा बारिश का आना वा धरती का हिलना आदि पहले से ही जान लेते हैं तो क्या आप सभी भी मास्टर नॉलेजफुल बनने से इनएडवान्स अपनी बुद्धि-बल द्वारा नहीं जान सकते हो? दिन-प्रतिदिन जितना-जितना अपनी स्मृति की समर्थी में आते जायेंगे अर्थात् अपनी आत्मा रूपी नेत्र को पावरफुल बनाते जायेंगे, क्लीयर बनाते जायेंगे उतना-उतना कोई भी अगर विघ्न आने वाला होगा तो पहले से ही यह महसूसता आयेगी कि आज कोई पेपर होने वाला है। और जितना-जितना इनएडवान्स मालूम पड़ता जायेगा तो पहले से ही होशियार होने के कारण विघ्नों में सफलता पा लेंगे। जैसे आजकल की गवर्नमेन्ट को जब पहले से ही मालूम पड़ जाता है कि दुश्मन आने वाला है, तो पहले से ही तैयारी करने के कारण विजयी बन सकते हैं। और अचानक आक्रमण विजयी नहीं बना सकता। यहाँ एक तो त्रिकालदर्शी होने के नाते कल्प पहले की स्मृति ऐसे अनुभव करते हो जैसेकि कल की बात है और दूसरा फिर नॉलेजफुल होने के नाते से, तीसरा बुद्धि रूपी नेत्र पावरफुल और क्लीयर होने के कारण वह इनएडवान्स की बातों को कैच कर लेते हैं। तो तीनों ही प्रकार से अगर अटेन्शन है वा स्थिति है तो क्या आने वाले विघ्नों को पहले से ही परख नहीं सकते हो? और जैसे-जैसे इनएडवान्स में परख वा पहचान होती जायेगी तो कभी भी हार नहीं होगी, सदा विजयी होंगे। जैसे नेत्र ठीक न होने के कारण वा सी.आई.डी.की चेकिंग ठीक न होने के कारण कभी गवर्नमेन्ट भी धोखा खा लेती है। इस रीति से सदैव अपने बुद्धि रूपी नेत्र की सम्भाल होनी चाहिए कि यथार्थ रीति से कार्य कर रहा है?

सी.आई.डी. का और क्या अर्थ है? चेकिंग ही सी.आई.डी. है। चेकिंग रूपी सी.आई.डी. होशियार है तो कभी भी दुश्मन से हार नहीं खा सकते। इसलिए अब भी प्रयत्न करो कि पहले से ही मालूम रहे। जैसे बारिश होने वाली होती है तो प्रकृति पहले से ही सावधानी ज़रूर देती है। अगर नॉलेजफुल हो तो प्रकृति के विघ्न से वह बच सकता है। अगर नॉलेजफुल नहीं तो प्रकृति की जो भिन्न-भिन्न छोटी-छोटी चीज़ें दु:ख के वा बीमारी के निमित्त बनती हैं उनके अधीन बन जाते हैं। कारण क्या होगा? पहचान वा नॉलेज की कमी। तो जैसे-जैसे याद की शक्ति अर्थात् साइलेन्स की शक्ति अपने में भरती जायेगी तो पहले से ही मालूम पड़ेगा कि आज कुछ होने वाला है। और दिन-प्रतिदिन जो अनन्य महारथी अटेन्शन और चेकिंग में रहते हैं, वह यह अनुभव करते जा रहे हैं। बुखार भी आने वाला होता है तो पहले से ही उसकी निशानियाँ दिखाई पड़ती हैं। तो इसमें भी अगर नॉलेजफुल हैं तो जो पेपर आने वाला है उसकी कोई निशानियाँ ज़रूर होती हैं। लेकिन परखने की शक्ति पावरफुल हो तो कभी हार नहीं हो सकती। ज्योतिषी भी अपने ज्योतिष की नॉलेज से, ग्रहों की नॉलेज से आने वाली आपदाओं को जानते हैं। आपकी नॉलेज के आगे तो वह नॉलेज कुछ भी नहीं है। तुच्छ कहेंगे। तो जब तुच्छ नॉलेज वाले एडवान्स को जान सकते हैं अपनी नॉलेज की पावर से, तो क्या इतनी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ नॉलेज से मास्टर नॉलेजफुल यह नहीं जान सकते? नहीं जान सकते तो इसका कारण यह है कि बुद्धि रूपी नेत्र क्लीयर नहीं है। और क्लीयर न होने का कारण क्या? केयरफुल नहीं। केयरफुल न होने के कारण नॉलेजफुल नहीं। नॉलेजफुल न होने कारण पावरफुल नहीं। पावरफुल न होने के कारण जो विजय की प्राप्ति होनी चाहिए वह नहीं होती। तो अपने नेत्र को क्लीयर रखना मुश्किल बात है क्या? इस बारी जो भट्ठी में आये हैं वह मधुबन से अर्थात् वरदान भूमि से क्या वरदान ले जायेंगे? एक तो अपनी बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर और केयरफुल रखना और इनएडवान्स नॉलेजफुल होकर परखने का वरदान लेकर जाना है जिससे कभी भी माया से हार नहीं खायेंगे। जिसकी माया से हार नहीं होती उनके ऊपर सुनने वाले और देखने वाले बलिहार जाते हैं। तो प्रवृत्ति में रहते आपके ऊपर आपके समीप वाले, दूर वाले बलिहार जायें, उसकी युक्ति यह है कि बार-बार हार न हो। जब बार-बार हार खा लेते हो तो हार खाने वाले के ऊपर बलिहार कैसे जायेंगे। इसलिए सभी को अपने ऊपर अर्थात् बाप के ऊपर बलिहार बनाने के लिए कभी हार नहीं खाना। हार पहनने के योग्य बनना है, न कि हार खानी है। यह है प्रवृत्ति में रहने वाले पाण्डवों के लिए विशेष रूप की शिक्षा। जब अपनी प्रवृत्ति में जाते हो तो प्रवृत्ति को प्रवृत्ति ही समझेंगे वा और कुछ समझेंगे? प्रवृत्ति वाले हैं - यह नाम बदल गया ना। अभी अपनी प्रवृत्ति को अधरकुमार कहेंगे? अपनी प्रवृत्ति का ज़रा भी संकल्प नहीं आये? (ऐसे ख्याल आने का सवाल ही नहीं पैदा होता) सवाल तो पैदा होता है लेकिन ख्याल पैदा न हो, ऐसे कहो। हम प्रवृत्ति-मार्ग वाले हैं-यह रजिस्टर आज से अपना बन्द करके और नया रजिस्टर सेवाधारी का रखा है, ऐसे समझें? दीपावली पर पुराने चौपड़े खत्म कर नये रखते हैं ना। तो आप लोगों ने भी सच्ची दीपावली मनाई? दीपक भी अविनाशी जगाया? पुराने प्रवृत्ति के स्मृति का वा पुराने संस्कारों का चौपड़ा भी खत्म किया? जैसे स्मृति वैसे संस्कार बनते हैं। तो यह चौपड़े पूरा जला दिये वा कुछ किनारे रख दिये हैं? अगर किनारे रखे होंगे तो कभी भी बुद्धि उनमें जायेगी। जलाकर खत्म किया वा कभी-कभी देखने की दिल होती है? कोई चीज़ ऐसी होती है जिससे डर लगता है, तो उसको किनारे रखने की बजाय भस्म किया जाता है। झूठी चौपड़ी बनाने वाले गवर्नमेन्ट से डरते हैं, इसलिए वह कागज़ जला कर भस्म कर देते हैं जो किसको निशानी भी न मिले। इस रीति पुरानी स्मृति का चौपड़ा वा रजिस्टर बिल्कुल जलाकर खत्म करके जाना। एक होता है किनारे करना, दूसरा होता है बिल्कुल जला देना। रावण को सिर्फ मारते नहीं लेकिन साथ-साथ जलाते भी हैं। तो इनको भी सिर्फ अगर किनारे रखा तो वह भी निशानी रह जायेगी। पुराने रजिस्टर की छोटी-सी टुकड़ी से भी पकड़ जायेंगे। माया बड़ी तेज़ है। उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है। जैसे गवर्नमेन्ट आफिसर्स को ज़रा भी कुछ प्राप्त होता है तो उसी पर वह पकड़ लेते हैं। ज़रा निशानी भी किनारे कर दी तो माया किस-न-किस रीति से पकड़ लेगी। इसलिए जलाकर ही जाना। सुनाया था ना कि कुमारों में जेब-खर्च का संस्कार होता है, वैसे प्रवृत्ति मार्ग वालों में भी विशेष संस्कार होता है कुछ- न-कुछ आईवेल के लिए किनारे रखना। चाहे कितना भी लखपति क्यों न हो, कितना भी स्नेही क्यों न हो, लेकिन फिर भी यह संस्कार होते हैं। अब यह संस्कार यहाँ भी पुरूषार्थ में विघ्न रूप होते हैं। कई समझते हैं कि अगर थोड़ा- बहुत रोब के संस्कार अपने में न रखें तो प्रवृत्ति कैसे चलेगी। वा थोड़ा-बहुत अगर लोभ के संस्कार भिन्न रूप में न होंगे तो कमाई कैसे कर सकेंगे वा अहंकार का रूप न होगा तो लोगों के सामने पर्सनैलिटी कैसे देखने में आयेगी। ऐसे-ऐसे कार्य के लिए अर्थात् आईवेल के लिए थोड़ा-बहुत पुराने संस्कारों का खज़ाना जो है उनको छिपाकर रखते हैं। यह संस्कार ही धोखा देते हैं। यह कोई पर्सनैलिटी नहीं वा इस पुराने संस्कारों का रूप प्रवृत्ति को पालन करने का साधन नहीं है। पुराने संस्कारों का लोभ रॉयल रूप में होता है, लेकिन है लोभ का अंश।

समझो प्रवृत्ति वाले व्यवहार में जाते हो, तो जहाँ देखेंगे थोड़ा-बहुत ज्यादा प्राप्ति होती है, तो उस प्राप्ति के पीछे इतना लग जायेंगे जो इस ईश्वरीय कमाई को कम कर देंगे। इस तरफ अटेन्शन कम कर उस तरफ की प्राप्ति तरफ ज्यादा अटेन्शन गया, तो क्या यह लोभ का अंश नहीं है? इस रीति जो आईवेल के लिए पुराने संस्कारों की प्रॉपर्टी को अर्थात् खज़ाने से थोड़ा-बहुत किनारे कर रखते हैं समय पर यूज़ करने के लिए, लेकिन यह संस्कार भी खत्म करना है। ऐसी चेकिंग करनी चाहिए जो ज़रा भी कहाँ कोने में कोई ऐसे पुराने संस्कार रहे हुए तो नहीं हैं? मोह भी होता है। प्रवृत्ति तरफ ज्यादा अटेन्शन जाए-यह भी रायल रूप में मोह का अंश है। यह बेहद की प्रवृत्ति तो 21 जन्म साथ चलती है और वह प्रवृत्ति कर्मबन्धन को चुक्तू करने की प्रवृत्ति है। तो चुक्तू करने वाले प्रवृत्ति के तरफ ज्यादा अटेन्शन देते और इस तरफ कम अटेन्शन देते हैं तो यह मोह-ममता का रायल रूप नहीं हुआ? यह अंश वृद्धि को पाते-पाते विघ्न रूप बन विजयी बनने में हार खिला देते हैं। इसलिए प्रवृत्ति वाले भले मोटे रूप में महादानी, महाज्ञानी भी बने लेकिन यह किनारे किये हुए विकारों के वंश के अंश भी खत्म करना है, यह भी अटेन्शन रखना है। ऐसे नहीं कि कोर्स मिला और पास हुए। नहीं। अभी इसमें भी पास होना है। बिल्कुल ज़रा भी किसी भी कोने में पुराने खज़ाने की निशानी न हो। इसको कहा जाता है मरजीवा वा सर्वंश त्यागी वा सर्व समर्पण वा ट्रस्टी वा यज्ञ के स्नेही वा सहयोगी। यह है कोर्स। भले कोर्स तो टीचर्स ने कराया। लेकिन कोर्स के पाrछे चाहिए फोर्स। सिर्फ कोर्स कर जाते हो तो कोर्स यहाँ तक ठीक रहता है लेकिन फिर पेपर देने के टाइम कोर्स भूल जाता है। कोर्स के साथ में फोर्स भी भरकर जायेंगे तो कोर्स, फोर्स सक्सेस करेगा। कभी फेल नहीं होंगे। तो यह फोर्स भरकर जाना, तब सदा विजयी बन सकेंगे। ज़रा भी निशानी न रहे। निशानी होने के कारण ही बुद्धि का निशाना नहीं लग सकता है। ऐसा ऊंचा पेपर देना है। छोटे-छोटे पेपर से पास होना बड़ी बात नहीं। लेकिन सूक्ष्म महीन पेपर से पास होना - यह है ‘पास विद् ऑनर’ की निशानी। तो अब समझा कि क्या करना है? अपनी पुरानी चौपड़ी पूरी जलाकर जाना। इतना फोर्स भरे, यह भी बहुत है। जैसे कपड़े धुलाई के बाद प्रेस न हों तो कपड़े में चमक नहीं आती, तो यह भी कोर्स के बाद अगर फोर्स नहीं भरता है तो चमत्कारी बनकर चमत्कार नहीं दिखा सकते। तो अब चमत्कारी बनकर जाना, जो दूर से ही आपकी ईश्वरीय चमक आकर्षित करे। सभी से ज्यादा अपनी तरफ आकर्षित करने वाली चीज़ कौनसी होती है जो दूर से ही न चाहते भी अपनी तरफ आकर्षित करती है? (चमक) चमक किससे आती है? आपकी प्रदर्शनियों में भी सभी से ज्यादा कौनसी चीज़ आकर्षित करती है? एक तो लाइट अपनी तरफ आकर्षित करती है, दूसरी माइट अपनी तरफ आकर्षित करती है। फिर उसमें कोई भी माइट हो। अपने में ईश्वरीय लाइट वा अपने में ट्रान्सफर होने की माइट हो तो भी आकर्षित करते हो। जो अपने को ट्रान्सफर नहीं कर सकते, तो ट्रान्सफर करने की लाइट और माइट अपने में धारण करने से हर आत्मा को अपनी तरफ आकर्षित कर सकेंगे। अच्छा।